चार कविताएं / श्रेया दुबे

शैली और संवेदना के धरातल पर श्रेया की कविताएं सही-सही उतरती हैं. इस बात को कहने में सफल दिख रही हैं कि इस उपभोक्तावादी युग में जीवन लगातार जटिल होते जा रहा है.  मनुष्य की संवेदना पर अनवरत हमला हो रहा है. इसलिए संकट भी बहुत पेश आ रहे हैं. तभी तो उन्होंने कहा है- … Read more

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दस कविताएँ / रत्नेश कुमार

विस्तृत विषयों पर सधा हुआ विचार रखना एक अच्छे कवि की निशानी होती है। रत्नेश जी इसी श्रेणी के कवि हैं। उनकी कविताएँ जिन विषयों पर केन्द्रित होती हैं लगता है उस पर गहरी आत्मीयता से विचार हुआ होता है। उनकी चिंताएँ कई चीज़ों को लेकर हैं। वे नौजवानों की बेऱोजगारी और उनकी बेऱोजगारी का … Read more

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दो कविताएँ / बंधु पुष्कर

वर्तमान में कविता जिस तरह से जनतांत्रिक और जनोन्मुखी होने की भूमिका का निर्वाह कर रही है, उतना शायद साहित्य की दूसरी कोई विधा नहीं है। कविता सबसे ज्यादा अनसुनी अनुगूँजों को जगह दे रही है। हाशिये के समाज के दुःख-दर्द की आवाज़ बन रही है। समाज की उन्हीं अनुगूँजों और दुःख-दर्द को प्रतिनिधित्व देती … Read more

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तीन कविताएँ / मरीना एक्का

भूमंडलीकरण के इस अंध–युग में जीवन का हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। नकारात्मक–सकारात्मक परिवर्तन हर जगह हुआ है। परिवर्तन की इस आंधी ने मज़दूर और कमज़ोर तबके को सबसे ज़्यादा चोट पहुँचाई है। उसके काम छिन जा रहे हैं, बसने की ज़मीन लूट ली जा रही है, मज़दूरी घटा दी जा रही है; उसके सामने … Read more

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चार कविताएँ / कुमार विनीताभ

यह समय दिग्भ्रमित होने का है। व्यक्ति और समाज दोनों को उसके लक्ष्य की पटरी से उतार दिया गया है। सत्ता-व्यवस्था धर्मान्धता की बर्छियों व भाले से संवैधानिक मूल्यों को लहूलुहान कर रही है। ऐसी स्थिति में बहुत कम जगहें बची हैं खुलकर कह पाने की। कविता जैसी जनप्रिय माध्यम ही सहारा बनी हुई है।कुमार … Read more

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दो कविताएँ / जागेश्वर सिंह

मनुष्य संवेदनशील प्राणी है, इसलिए वह समाज में हो रहे उठा–पटक के संबंध में विचार करता है और उसकी तह तक पहुँचने की कोशिश करता है। वह हर घटना और संबंध पर नए तरीके से सोचता है और एक अलग तरह का अनुभव संसार रचता है। जागेश्वर सिंह ने भी अपनी कविता में कुछ ऐसा … Read more

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तीन नवगीत / रूपम झा

रूपम झा अपने नवगीतों के जरिये वर्तमान की विसंगतियों पर गहरा प्रहार करती हैं। उनके नवगीतों में प्रतिरोध और व्यंग्य का अनुपम समन्वय है। भाषा और शिल्प के मामले में भी सचेतनता दिखाई देती है। पढ़िए, उनके तीन नवगीत  : –––––––––– सामने अमृत महोत्सव सामने अमृत महोत्सव पर हुए आजाद क्या भुखमरी, बेरोजगारी, त्रासदी पीठ … Read more

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तीन कविताएँ / अंजली राय

अंजली राय की कविता का मूल विषय प्रेम है। उनके प्रेम में सामाजिक भाव-बोध की कोई कमी नहीं है। भाषा व भाव में थोड़ी बहुत भावुकता जरूर है, लेकिन विद्रोह की चेतना कभी पीछे छूटते हुए नहीं दिखती। बड़ी सरलता से वे प्रेम और विरोध-भाव का निर्वहन एक साथ कर लेती हैं। पढ़िए, उनकी तीन … Read more

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