अंजली राय की कविता का मूल विषय प्रेम है। उनके प्रेम में सामाजिक भाव-बोध की कोई कमी नहीं है। भाषा व भाव में थोड़ी बहुत भावुकता जरूर है, लेकिन विद्रोह की चेतना कभी पीछे छूटते हुए नहीं दिखती। बड़ी सरलता से वे प्रेम और विरोध-भाव का निर्वहन एक साथ कर लेती हैं। पढ़िए, उनकी तीन कविताएँ :
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प्रतीक्षा का सौंदर्य
मैं पढ़ सकती हूँ तुम्हें
तब भी जब इस संसार के
सारे शब्द शून्य हो जाएँ
मैं तुम्हें तब भी सुन सकती हूँ
जब धरातल की सारी ध्वनियां
आकाश में गुम हो जाएं
मैं तुम्हें तब भी गुनगुना सकती हूँ
जब लहरों के सारे सुर
विस्मृत हो जाएं
मैं तुम्हें तब भी छू सकती हूँ
जब मेरी सारी ज्ञानेंद्रियां
निष्क्रिय हो जाएं
क्योंकि जोगी !
तुम्हारी देह
से बिखरने वाले इत्र में
इतना सामर्थ्य है कि
वो इस वाचाल नायिका
के नैनों में इतराते समय
पैरों में चुभी कंकरिया निकाल
मरहम बांध दे
बस इसी क्षण की देरी है
शब्द भी तुम्हारी प्रेयसी
की जिह्वा से मधु बन टपकेंगे।
ध्वनियां कर्ण पल्लवों का
शृंगार करती मिलेंगी
सातों सुर ग्रीवा (गले) का हार
हो जायेंगे।
साँझ की लाली उतर
आयेगी कपोलों पर ,
महावार में रक्तिम आभा
लिए भोर आयेगा।
चांद बेचैन होगा उसके माथे
पर उतरने को ,
पुष्प इठलाएंगे उसके केशों
में उलझने को।
उस मिलन की आभा से
इस सृष्टि का श्रृंगार होगा।
तुम नहीं जानते
तुम्हारा रंग न उतर पाने से
मेरी हथेली ही नहीं
इस धरा की सारी पंखुड़ियाँ
रंगहीन हो गई हैं ।
बसंत की चाह नहीं मुझे
मैं तो उस पतझड़ के प्रेम में हूं / जिसकी सूखी डालियों पर / तुम्हारी चंचल स्मृतियां लटकी हैं।
जिनके झड़ते ही अमलतास से
अग्नि झड़ने लगती है।
देखो कितना सुखद है न
परिजात आज भी
तुम्हारे आगमन के पूर्व प्रहर ही
उठकर उन रास्तों को बुहार देता
जैसे उर्मी को लखन की
प्रतीक्षा हो।
या किसी नवोढ़ा को
उसके प्रियतम की।
और उसी प्रतीक्षा में जलाए
दीपक आज भी सितारों की
आँखों में रौशनी भर रहें हैं
तुम नहीं जानते
घृणा की धुँध के बावजूद भी
प्रेमिल आँखें संसार का
कोमल हृदय पढ़ लेती हैं।
सुन लेती हैं उन पीड़ाओं का
मौन चीख / घनघोर शोर के बावजूद
भी बादल घुमड़ पड़ते हैं।
आसमान का मौन संगीत कहीं
हवाओं में मरहम घोलता है।
दूर कहीं एक प्रेमी अपने
युगल की प्रतीक्षा से उतना ही प्रेम
कर बैठता,
जितना आईने को अपने अक्स से
और
जितना मरुभूमि के कंठ को
अपने प्यास से हो जाता।
क्योंकि प्रतीक्षा के बिना प्रेम
अपना सौंदर्य खो देता है
और
पवित्रता के बिना स्पर्श
कहीं अपना मूल्य
आभूषण और अस्त्र
स्त्रियों के हिस्से में लिखी कविताएँ,
उन्हें तोहफ़े में नवरत्न जड़ित
आभूषणों जैसे दी गईं।
जो बस लिखकर किसी
ख़ज़ाने में या तो सहेज
कर रख दी गईं,
या फिर बस समय-समय पर
सौंदर्यीकरण के लिए
निकाली गईं।
गहनों ने स्त्री जाति को
किसी गहने की ही भांति
सजाया है, पर
कभी सुरक्षा ना दे पाया
उल्टा असुरक्षा का और
कारण बन गया ।
वर्तमान की स्त्रियों को
अपने इतिहास से
सीखना होगा
कि
अगर वो अपना भविष्य
बचाए रखना चाहती हैं तो
अपने शब्दों से
“आभूषणों की जगह अस्त्र
गढ़ना सीख लें “।
शब्दों का एक-एक अक्षर
एक-एक ध्वनि पैरों की पाज़ेब
के वो घुंघरू हैं;
जो स्वच्छंदता
की धुन बने ना कि पहने वाले
के पर ही बांध दे ।
हाथों की चूड़ियां
स्वतंत्रता के गीत गाएं
न कि बंधन की
दास्तान….!
ये वाक्य अटल अमिट
बनाने होंगे
उन्हें खुद / जिनके लिए लिखे गए हैं…!!
जीवन की तनख्वाह
जीवन के अधिकतर क्षणों में हम
महीने की तनख़्वाह की तरह खर्च होते रहते हैं
जिसका उम्र भर तक एहसास नहीं होता।
पर
जीवन के बहुत कम क्षणों में हम
बचपन में मिले सिक्कों की तरह मुट्ठी में
बटोरे जाते हैं
और
उन कम क्षणों की खनखनाहट ही
जीवन के आख़िरी पड़ाव तक हमारे कानों में बची रहती है।
बहुत शोर से गुज़र कर हम सुनना कम कर देते हैं।
बहुत रौशनी से गुजरने पर
हमारी आँखें चौंधियां जाती हैं
तो गौर करने पर
जब हम कम सुनने लगते हैं तो खुद को सुनाई देने लगते हैं
और जब कम देखने और दिखने लगते हैं
तो खुद को दिखाई देने लगते हैं ।
यहां सारा खेल गौर करने का है
बस गौर करने का ।।
बस गौर करने पर
अस्पष्टता के बीच स्पष्टता
अस्थिरता के बीच स्थिरता
और अनिश्चितता के बीच निश्चितता
मिल ही जाती है।
वैसे ही जैसे बचपन के महज़
मुट्ठी भर सिक्कों
से कमाई गई ये पूरी दुनिया ।।
पूरी मतलब पूरी की पूरी…
अंजली राय ने स्नातक (जीव-विज्ञान) में किया है। वर्तमान में बिहार में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं। बचपन से उनकी रूचि कविता, कहानियों और किस्सों को सुनने-सुनाने में रही है। कविता प्रकाशन का यह पहला अवसर है।
मोबाइल नं. 9140036201
ईमेल. anjali.anju695@gmail.com
Really bangles must represent freedom and the childhood,the fist.-S.N Rai
बहुत सुन्दर रचना
उम्दा कविता
अत्यंत प्रशंसनीय