पाँच ग़ज़लें / सत्यम भारती

सत्यम भारती अपनी ग़ज़लों में जीवन के कई श्वेत-श्याम चित्र खींचते हैं। उनकी भाषा सरल है, कहन में बनावटीपन नहीं है। रचना में यह सरलता आम-जनमानस के प्रति आस्था और स्वयं के दैनंदिन के संघर्ष के बगैर संभव नहीं है। सत्यम जी ने संघर्ष से अर्जित उन अनुभवों का बड़ी कुशलता से इस्तेमाल किया है। पढ़िए, उनकी पाँच ग़ज़लें :

––––––––––

ग़ज़ल-01

सच है तीखी ज़बान रखता हूँ,
मैं हथेली पे जान रखता हूँ।

वक़्त को बाँचना ज़रूरी है,
इक मुकम्मल बयान रखता हूँ।
ठोकरों से हूँ कब मैं घबराया,
सीख का हर निशान रखता हूँ।
लौट आएँगे वे ख़ुशी के दिन,
हौसले की उड़ान रखता हूँ।
हाँ, मुझे मेरी धरती प्यारी है,
फिर भी मैं आसमान रखता हूँ।
ग़ज़ल-02
हम ज़रा ख़ुद को बदल कर देख लें,
साथ तेरे हम भी चल कर देख लें।
ज़िंदगी आसान करने के लिए,
वक़्त के साँचे में ढल कर देख लें।
रोशनी देनी है इस संसार को,
सूर्य जैसा आज जल कर देख लें।
ज़िन्दगी के ग़म भुलाकर आज हम,
क्यों न बच्चों-सा मचलकर देख लें।
हम यहाँ सबकुछ निगलना चाहते,
जो बुरा उसको उगल कर देख लें।

ग़ज़ल-03

बड़ी हसीन रात है,
लबों पे दिल की बात है।
डरे-डरे से हैं खड़े,
डरी हुई जमात है।
कहाँ हमारी एकता,
फ़कत ये जात-पात है।
दिवस की हार तय हुई,
अँधेरे की बिसात है।
सभी इमारतें ढहीं,
किया समय ने घात है।
ग़ज़ल-04
देखा मैंने नकली चेहरा चेहरे पर,
सबकुछ ही था कितना अच्छा चेहरे पर।
चेहरे से मुस्कान हटा कर देखो तुम,
मिल जाएगा सच्चा-झूठा चेहरे पर।
मैंने जबसे उसको देखा सपनों में,
दिखता है इक रूप सुनहरा चेहरे पर।
अक्षर-अक्षर सत्य दिखाई देता है,
सुख-दुख सबकुछ आकर ठहरा चेहरे पर।
पूरा ही है चाँद तुम्हारा यह चेहरा,
ओढ़ो मत तुम कोई दुखड़ा चेहरे पर।

ग़ज़ल-05

मन ने क्या-क्या कहा है, सुनो तो सही,
आज सपने दृगों में बुनो तो सही।
हर तरफ ज्ञान बिखरा है, उसको पढ़ो,
जो पढ़ा है उसे फिर गुनो तो सही।
फूल चुनने को, सारा जहाँ चुन रहा,
राह के काँटे भी कुछ चुनो तो सही।
हर तरफ़ है अँधेरा, है कुहरा घना
सूर्य बनकर इन्हें तुम धुनो तो सही।
सिर्फ़ अपनी कहानी सुनाओ नहीं,
कौन क्या कह रहा है, सुनो तो सही।

सत्यम भारती अपने दोहे व ग़ज़लों के अलावा शोध आलेख और समीक्षा के लिए जाने जाते हैं। वे राजकीय मॉडल इंटर कॉलेज नैथला हसनपुर, बुलंदशहर में प्रवक्ता (हिंदी) के पद पर कार्यरत हैं। ऊनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं -‘सुनो सदानीरा ‘ (ग़ज़ल-संग्रह), व ‘बिखर रहे प्रतिमान ‘ (दोहा-संग्रह)।

 

 

Share

2 thoughts on “पाँच ग़ज़लें / सत्यम भारती”

Leave a Comment