मनुष्य संवेदनशील प्राणी है, इसलिए वह समाज में हो रहे उठा–पटक के संबंध में विचार करता है और उसकी तह तक पहुँचने की कोशिश करता है। वह हर घटना और संबंध पर नए तरीके से सोचता है और एक अलग तरह का अनुभव संसार रचता है। जागेश्वर सिंह ने भी अपनी कविता में कुछ ऐसा ही किया है। पढ़िए, उनकी दो कविताएँ :
प्रेम और आज़ादी
मैंने धरती से प्रेम किया
और सबका भला करना सीखा
फिर उसे आजाद छोड़ दिया सबके लिए
मैंने पेड़ से प्रेम किया
और गतिशील रहना सीखा
और उसे आजाद छोड़ दिया बढ़ने के लिए
मैंने फूलों से प्रेम किया
सुगंध की तरह फैलना सीखा
फिर उसे भी आजाद छोड़ दिया
महक और फैलाने के लिए
मैंने किया प्रेम पानी से
हर रंग मे ढल जाना सीखा
और उसे आजाद कर दिया निरंतर बहने के लिए
मैंने हवा से प्रेम किया
उसे महसूस करना सीखा
और फिर आजाद कर दिया
कहीं भी आने–जाने के लिए
मैंने घर से प्रेम किया
सारे रिश्ते-नाते निभाना सीखा
फिर उसे भी आजाद छोड़ दिया
सभी को अपना बनाने के लिए
मैंने गलियों, नालों, मोहल्लों से प्रेम किया
और बसना सीखा
और उसे भी आजाद कर दिया
सब की यादों में आने के लिए
मैंने धूप से प्रेम किया,
गरम चादर की तरह होना सीखा
और उसे आजाद कर दिया,
अंधेरा दूर करने के लिए
मैंने गाँवों, शहरों से प्रेम किया
उनसे सँवरना सीखा
फिर आजाद कर दिया सँवरने के लिए
मैंने सड़कों से प्रेम किया
सही रास्ता चुनना सीखा
और आजाद कर दिया,
पथिकों के सहारा बनने के लिए
मैंने देश से प्रेम किया
समर्पित रहना सीखा
और उसे आजाद कर दिया
सभी की चाह बनने के लिए
मैंने विश्व से प्रेम किया
एकजुट होना सीखा
फिर आजाद छोड़ दिया बंधुत्व के लिए
मैंने आकाश से प्रेम किया
और उससे ऊँचा उठना सीखा
फिर आजाद कर दिया और ऊंचा उठने के लिए
मैंने ऐसे लोगों से प्रेम किया
जिनसे अपनत्व सीखा
और फिर उन्हें भी आजाद कर दिया
सब को अपना बनाने के लिए
मैंने ऐसे लोग से भी प्रेम किया
जिनसे अच्छे आचरण सीखे
और उन्हें भी आजाद कर दिया सत्य की निरंतरता के लिए
मैंने सभी से प्रेम किया ,
सभी से सीखा,
सभी को आजाद कर दिया
और फिर तुम मिले,
तुम से सीखने को बहुत कुछ है
और तुम आजाद भी हो
मैंने प्रेम से प्रेम किया,
प्रेम करना सीखा
और फिर उसे भी आजाद कर दिया…..
रेप और इतिहास
बहुत दिन तक ढूँढ़ा मैंने इतिहास में
क्या सुभाष बोस को नहीं जानकारी थी
रेप जैसी समस्या के बारे में
क्या विवेकानन्द को नहीं ज्ञात था
इज्जत उतरती है सरे–बाज़ार में
क्या गांधी नहीं जानते थे
कि मार डाली जाती हैं लड़कियाँ रेप के बाद
क्या नहीं मालूम था भीमराव को
नही बख़्शी जाती हैं रात में अकेली पाई गई लड़कियाँ
क्या नहीं मालूम था कलाम को
कुछ दिन ही जलाई जाती हैं इंडिया गेट पे मोमबत्तियाँ
मैं समझना चाहता हूँ …
क्या नहीं दिखा था तथागत को
कई दिन तक बेटी के घर नहीं लौटने पर
आँखों से नदी की तरह गिरते आँसुओं का मंज़र
क्या नहीं समझा था कृष्ण ने
धर्म के नाम पर लूट ली जायेंगी बच्चियाँ
क्या नहीं पता था राम को
लाँघ जाएँगे दरिंदे मर्यादा की सीमाएँ
क्या नहीं आता था मनु के काल में किसी को घृणित विचार
मैं खोज में हूँ कब से….
मैं खोजना चाहता हूँ
चीखें सुन-सुनकर जिससे झल्ला उठे
मौन दीवार
मैं समझ लेना चाहता हूँ
चन्द्रगुप्त के मगध में
किसी को मजबूर करके शिकार बनाने पर चाणक्य का दण्ड विधान
मैं ढूँढ़ लेना चाहता हूं
आर्यगाथाओं में किसी पर हाथ फेर देने पर मृत्यु देने का साक्ष्य
मैं महसूस करना चाहता हूँ…
आदिमानवों ने कुदृष्टि डालने के दण्ड के लिए बनाया था क्या कोई हथियार
अपने अतीत से पूछे सारे सवालों को वर्तमान की परिधि में बांधकर
मैं पूछना चाहता हूं खुद से
क्यूँ नहीं जाने देना चाहता
अकेले अपनी बहनों को पढ़ने
किसी दूर-दराज शहर
जागेश्वर सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शोध छात्र हैं। कविता–लेखन में विशेष रुचि है। निरंतर उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
मोबाइल नं. 84169 30452
बहुत सुंदर कविता।
यथोचित टिप्पणी के लिए धन्यवाद
Great
बहुत सुंदर प्रयास रहा आपका।