बिहार वामपंथी राजनीति की अनुकूल भूमि रहा है और है। स्वतंत्रता-पूर्व वाम राजनीतिक-वैचारिकी को स्वामी सहजानंद सरस्वती, राहुल सांस्कृत्यायन, बाबा नागार्जुन, आदि ने किसानों-मजदूरों को एकजुट कर तत्कालीन सामंती व्यवस्था के विरुद्ध लड़ते हुए आगे बढ़ाया। देश की आज़ादी के बाद भी कई जुझारू शख्सियतों ने संघर्ष करते हुए वाम राजनीति की अनुगूंजें बिहार में कायम रखीं। उस एक व्यक्ति ने जिसने इस आवाज़ को और ऊँचाई और विस्तार दिया उसमें चंद्रशेखर सिंह एक हैं। पढ़िए, उनके जीवन से सम्बंधित विभिन्न पहलुओं को सामने लाता यह आलेख। इस आलेख को उनके जन्मदिवस (26 दिसम्बर ) पर उनकी ही वैचारिक प्रेरणा से सामाजिक-राजनीतिक मोर्चों पर सक्रिय रहने वाले लेखक, राजनीतिक कार्यकर्त्ता राजकिशोर जी ने लिखा है।
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लाल सितारा का उदय
“इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गए मेरे आंसू,
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था।”
ऐसा गीत गुन-गुनाने वाले हस्ती का नाम था चंद्रशेखर। सुडौल शरीर, श्याम वर्ण, बग-बग धोती व कमीज, उस पर जैकेट, पैर में जूता, चुंबकीय व्यक्तित्व एवं सम्मोहित करने वाली भाषा; शेर जैसा दहाड़ने वाले, मुर्दों में भी जान फूंकने वाला, जोशीला भाषण देने वाला हस्ताक्षर पुरुष का नाम था चंद्रशेखर। बिहार के राजनीतिक जीवन को लगभग चार दशक तक आलोकित एवं अनुप्राणित करने वाले जननायक चंद्रशेखर का जन्म स्वतंत्रता आंदोलन का बारदोली एवं समाजवादी आंदोलन का मास्को कहलाने वाले गांव बीहट, बेगूसराय में 26 दिसंबर 1915 को एक जमींदार परिवार में हुआ था।
इनके पिता रामचरित्र सिंह प्रदेश काँग्रेस के शीर्षस्थ, ईमानदार, स्पष्टवादी, स्वतंत्रता आंदोलन के तपे-तपाए नेता थे। रामचरित्र सिंह मुंगेर जिला में विज्ञान संकाय से स्नातक करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वह मुजफ्फरपुर जी.बी. महाविद्यालय में आचार्य कृपलानी, मलकनी जैसे क्रांतिकारी अध्यापक के साथ व्याख्याता पद पर कार्यरत थे। गाँधी के आह्वान पर कृपलानी, आदि के साथ देशभक्त अध्यापक महाविद्यालय की नौकरी को तिलांजलि देकर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े।
राम चरित्र बाबू सन 1946 से 1957 तक बिहार सरकार के विद्युत एवं सिंचाई मंत्री रहे। वे एक स्वाभिमानी एवं स्वतंत्र विचारधारा वाले व्यक्ति थे। अपने पुत्र के कम्युनिस्ट विचारों एवं क्रियाकलापों में कभी कोई हस्तक्षेप नहीं करते थे। मंत्रित्व काल में उनके सरकारी आवास पर उनके कमरे में गाँधी एवं नेहरू की तस्वीर लगी रहती थी, तो चंद्रशेखर के कमरे में मार्क्स और लेनिन की। सैद्धांतिक मतभेद के बावज़ूद पिता और पुत्र का अनोखा संबंध था। पुत्र विधानसभा एवं आम सभा चुनावों में अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण एक मंत्री के रूप में अपने पिता की राजनीतिक आलोचना मर्यादा के तहत करते थे। चंद्रशेखर ने अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश को भी कम्युनिस्ट बना दिया था। पिता राम चरित्र बाबू अपने बच्चों पर राजनीतिक दबाव नहीं देते थे।
बीहट गाँव
बीहट गांव बेगूसराय जिले ही नहीं, बिहार का गौरवशाली अतीत, स्वतंत्रता आंदोलन केंद्र, समाजवादी आंदोलन का प्रकाश स्तंभ है; जो शहीद विधायक सीताराम मिश्र, युवा संत कुमार, विंदेश्वरी एवं महर्षि रामचंद्र मुखिया की शहादत की भूमि है। देश के चर्चित युवा कन्हैया की जन्म भूमि है।
इस गाँव ने छह विधायक, मंत्री, कई प्रशासकीय अधिकारी दिए। विकास वैभव आईपीएस, वाल्मीकि बाबू आईएएस, कीर्तन सम्राट बिंदेश्वरी जी के अलावा कई खिलाड़ी व कलाकार को इस गाँव ने अपने गर्भ में पाला है। इन विभूतियों के आन-बान के कारण बीहट का ही नहीं, बिहार का भी सिर ऊँचा हुआ है।
जननायक चंद्रशेखर की कर्मभूमि सिर्फ बीहट ही नहीं, पूरा प्रदेश था। जैसा बुलंद शरीर, वैसी ही बुलंद सिंह-गर्जना! उनका भाषण सुन एवं उनसे जुड़कर बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी का फैलाव हुआ। वे हिंदी भाषी क्षेत्र में स्टार प्रचारक थे।
शिक्षा
कॉ. चंद्रशेखर की आरंभिक शिक्षा बिहार विद्यापीठ से हुई। 1933 में सेमिनरी से मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाख़िल हुए। बनारस में गाँधी की बछिया के नाम से पुकारे जाने वाले चंद्रशेखर प्रसिद्ध कम्युनिस्ट रुस्तम सैटिन के प्रभाव में मार्क्सवादी साहित्य का अध्ययन करते हुए कम्युनिस्ट बन गए। 1937 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद पटना विश्वविद्यालय में एमए अर्थशास्त्र में दाख़िल हुए। वहीं इंद्रदीप सिन्हा के साथ मित्रता हुई। 1937 में बिहार छात्र संघ के प्रथम महासचिव बने।
1940 में चंद्रशेखर का विवाह गोरिया कोठी निवासी प्रसिद्ध काँग्रेस नारायण प्रसाद सिंह की पुत्री शकुंतला से हुई। विवाह के अवसर पर ही दूल्हा चंद्रशेखर और इंद्रदीप सिन्हा सहित पूरी मित्र मंडली ने एक साथ कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता का फॉर्म भरा। विवाह के बाद ही कॉ. चंद्रशेखर को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। युवा पत्नी शकुंतला जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक कर रही थी। जेल में बंद पति चंद्रशेखर को वहीं से पत्र लिखा करती थी। कॉ. चंद्रशेखर ने अपनी पत्नी के एक पत्र का जवाब देते हुए लिखा- “शकुंतले! तुम मेरी पत्नी हो, पार्टी मेरी माँ है। तुम ही बताओ इसमें से किसी एक को कैसे छोड़ दूँ?”
राजनीतिक सफ़र
कॉ. चंद्रशेखर कम्युनिस्ट पार्टी की उस पीढ़ी के नेताओं में थे जो यह मानकर चलते थे कि कम्युनिस्ट होना ही दुनिया की सर्वोत्तम उपलब्धि है। मेहनतकशों के आंदोलन के लिए सर्वस्व न्यौछावर करना ही पेशेवर क्रांतिकारी की सही पहचान है।
बात 1956 की है। बेगूसराय में काँग्रेस के विधायक मो. इलियास की मृत्यु के बाद उपचुनाव हुआ। कॉ.चंद्रशेखर कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से चुनाव लड़े और विजयी हुए। उस समय के महत्वपूर्ण अख़बार सर्च लाइट ने लिखा- “हिंदी भाषी क्षेत्र में लाल सितारा का उदय हो गया।” बिहार विधानसभा में पहले कम्युनिस्ट विधायक कॉ. चंद्रशेखर बने।
विधानसभा में उनके सामने दो चुनौतियाँ थीं। पहली, मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, जिसे पिता जैसा सम्मान देते थे। दूसरी, पिता राम चरित्र सिंह, मंत्री थे। दोनों के प्रति अति सम्मान था। व्यक्तिगत संबंध को त्याग कर सम्मानित ढंग से सरकार के कार्यों की निर्मम आलोचना करते थे। मुख्यमंत्री, एवं स्वयं रामचरित्र बाबू को अपने पुत्र के प्रश्नों का जवाब देने में पसीने छूटते थे। पटना के बुद्धिजीवी विधानसभा की दर्शक दीर्घा में बैठकर पिता पुत्र के संभाषण को सुनते थे। वैचारिक मतभेद के बाद भी पिता पुत्र का रिश्ता आदर्शों से भरा एवं अनुकरणीय था।
1957 के चुनाव को कॉ. चंद्रशेखर को हराने के लिए मुख्यमंत्री श्री बाबू ने प्रतिष्ठा का विषय बना लिया। अपने अनुकूल बेगूसराय एसडीओ को बदल दिया। चुनाव अभियान में कॉ.चंद्रशेखर के साथ छात्र-नौजवानों का उभार था। उनके खिलाफ काँग्रेस दबंग नेता सरयू बाबू खड़े हुए। बूथ कैपचरिंग का इतिहास रचा गया। पुलिस एवं काँग्रेस गुंडे एक साथ मिलकर दलित-कमज़ोर मतदाता को मतदान केंद्र से भगाकर रचियाही गाँव के सभी बूथ को कैप्चर कर लिया और कॉ. चंद्रशेखर को ज़ोर-ज़बरदस्ती से हरा दिया।
उस चुनाव में रामचरित्र बाबू को काँग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। चूँकि रामचरित्र सिंह का पुत्र कम्युनिस्ट था, इसलिए एक साज़िश के तहत रामचरित्र बाबू को काँग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। स्थानीय जनता के दबाव पर रामचरित्र बाबू निर्दलीय उम्मीदवार हुए और तेघड़ा विधानसभा के पुनः विधायक बने। उसके बाद राम चरित्र बाबू ने राजनीति से सन्यास ले लिया।
रामचरित्र बाबू के बाद 1962 से आजीवन कॉ. चंद्रशेखर तेघड़ा विधानसभा से विजयी होते रहे। याद रहे, बरौनी या तेघड़ा विधानसभा में रामचरित्र बाबू के बाद किसी काँग्रेसी ने चुनाव नहीं जीता है।
पार्टी के विकास का काल
1948 में प्रथम पार्टी सम्मेलन में कॉ.चंद्रशेखर राज्य परिषद एवं राज्य सचिव मंडल के सदस्य चुने गए। जीवन-पर्यंत वह इन पदों पर बने रहे।
1956 से 1965 का समय बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी के विकास का स्वर्ण काल था। इसी दौरान में पार्टी ने पटना में जमीन खरीदी, अजय भवन बनाया, प्रेस खड़ा किया एवं पत्र-पत्रिका के प्रकाशन को सुनिश्चित किया। कोष-संग्रह में कॉ.चंद्रशेखर ने अगुआ की भूमिका अदा की।
1964 में चीनी आक्रमण से उत्पन्न परिस्थितियों से पार्टी में फूट हुई। कॉ.चंद्रशेखर चट्टान की तरह खड़े रहे। यद्यपि सीपीएम वालों ने उनपर विशेष निशाना बनाया। 1964 के बंबई महाधिवेशन में कॉ.चंद्रशेखर राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य चुने गए और मृत्यु-पर्यंत उस पद पर बने रहे।
केबी सहाय के ख़िलाफ़ आन्दोलन
अगस्त 1965 में कम्युनिस्ट पार्टी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर भ्रष्ट मुख्यमंत्री केबी सहाय के दमन, महँगाई, टैक्स बढ़ोतरी एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्यव्यापी संघर्ष शुरू किया। 9 अगस्त को पटना में गोली चली। 10 अगस्त की शाम में गाँधी मैदान में सभा आयोजित की गई। सभा पर केबी सहाय की पुलिस ने प्रहार किया। मंच पर कॉ.चंद्रशेखर, संसोपा नेता रामानंद तिवारी, कर्पूरी ठाकुर मौजूद थे। पुलिस ने तीनों को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। कॉ.चंद्रशेखर को मरा जानकर पुलिस ने मंच के नीचे फेंक दिया। शेष लोगों को पकड़कर पुलिस लहूलुहान अवस्था में पटना जेल ले गई।
जब रामानंद तिवारी एवं कर्पूरी ठाकुर को घायल अवस्था में ट्रक में लादकर पुलिस चली गई, तब दो छात्र वहाँ आए और उन्होंने दोनों ओर से अपने कंधे का सहारा देकर खून से लथपथ चंद्रशेखर को मैदान पार करा कर बेहोशी की स्थिति में पटना के अस्पताल में भर्ती करवाया। पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपना खून देकर उनके प्राण को बचाया। उनके लिवर से खून वमन करने लगा। इस स्थिति में भी केबी सहाय के आदेश पर पुलिस अस्पताल में कॉ.चंद्रशेखर को जेल ले जाने के लिए पहुँची। पटना के प्रसिद्ध डॉक्टर उपेंद्र नारायण शाही डट गए कि अस्पताल में मेरा कानून चलता है, मैं चंद्रशेखर को गिरफ्तार नहीं होने दूंगा। डॉक्टर शाही की दृढ़ता के कारण चंद्रशेखर की प्राण रक्षा हुई। कई दिनों तक जीवन मौत के बीच लड़ते रहे। महीनो बाद अस्पताल से घर आए।
केबी सहाय सरकार जननायक चंद्रशेखर को जान से मारना चाहती थी। लेकिन डॉक्टर शाही ने निर्भीक होकर सरकार के आदेश की अवहेलना कर मानवता के साथ खड़े रहे।
कॉ.चंद्रशेखर का कार्य क्षेत्र पूरा बिहार था। 1967 का चुनाव आया। केबी सहाय के आतंक राज के खिलाफ पुनः विद्रोह उठा। 1965 से 1967 के बीच में पुलिस ने पचास जगह पर गोलियाँ चलाईं; जिसमें सौ से अधिक लोग मारे गए।
केबी सहाय की सरकार के खिलाफ़ विद्रोह की ज्वाला को प्रज्वलित करने में कॉ.चंद्रशेखर की शक्तिशाली वाणी ने अनुपम भूमिका अदा की थी। केबी सहाय के रावण राज के खिलाफ़ पूरे बिहार में चुनाव प्रचार में कॉ.चंद्रशेखर सबसे बड़े स्टार प्रचारक बने। आजादी के बाद पहली दफा काँग्रेस हार गई। कॉंग्रेसी राज का सितारा अस्त हो गया। कॉ. चंद्रशेखर के रक्तदान ने क्रूर सरकार को हराया।
संयुक्त मोर्चे की सरकार
1967 में महामाया मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रथम बार संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी। इस सरकार का समर्थन जनसंघ एवं कम्युनिस्ट दोनों कर रहे थे। इस संयुक्त मोर्चा की सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी के दो सदस्य कॉ. चंद्रशेखर एवं कॉ. इंद्रदीप सिन्हा कैबिनेट एवं कॉ. तेज नारायण झा राज्य मंत्री बने थे। कॉ. चंद्रशेखर सिंचाई एवं विद्युत मंत्री, कॉ. इंद्रदीप सिन्हा राजस्व मंत्री बने। कॉ.चंद्रशेखर ने सिंचाई एवं बिजली विभाग के काम में तूफानी गति ला दी। गंडक नहर की बराज योजना जो तीन साल में पूरी होती, उसे छह माह में पूरा कराया। बीस वर्ष काँग्रेस सरकार में मात्र 10,000 नलकूप बने थे। 9 माह में 11000 नलकूप कॉ.चंद्रशेखर ने बनवाए। विद्युत विभाग में ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर सभी मजदूरों की नौकरी स्थायी करवायी। ग्रामीण विद्युतीकरण पर जोर दिया गया।
कॉ. इंद्रदीप सिन्हा ने टाटा की जमींदारी को समाप्त करने के लिए सरकार पर जमकर दबाव बनाया। इस तरह सरकार टूट गई। कम्युनिस्ट मंत्री कॉ. चंद्रशेखर एवं कॉ. इंद्रदीप सिन्हा एक मंत्री के रूप में इतिहास रचा, जो आज तक जनता के दिलों में है। तत्कालीन समाचार एजेंसी कम्युनिस्ट मंत्री के कार्यों की प्रशंसा करती रहती थी।
वीरपुर प्रखंड के सिकरौला बलान एवं बैंती नदी के किनारे “लिफ्ट एरीगेशन” प्लांट लगाकर मयूराक्षी योजना चालू की। पूरे बिहार को अकाल से बचाया।
बरौनी औद्योगिक नगर की स्थापना में कॉमरेड चंद्रशेखर का उल्लेखनीय योगदान रहा है। एशिया का प्रसिद्ध गढ़हरा यार्ड, थर्मल, रिफाइनरी, खाद कारखाना, लघु उद्योग के निर्माण, विस्थापित के पुनर्वास, जमीन का उचित दाम एवं स्थानीय छात्र-नौजवानों को नौकरी दिलाने में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही। नावकोठी, रजाकपुर क्षेत्र में भूमि संघर्षों का गौरवशाली इतिहास रहा। भूमि संघर्ष करके 20,000 एकड़ कुल ज़मीन, जमींदारों से छीन कर गरीबों में बँटवाया गया था। उन भूमि संघर्षों में कई कम्युनिस्ट शहीद भी हुए।
पारिवारिक जीवन
कॉ.चंद्रशेखर इतिहास के कालजयी पुरुष थे। आजन्म विप्लवी, अजेय; उपेक्षितों, दलितों एवं मजलूमों का रहनुमा; समाजवादी आंदोलन के लिए दधीचि; इतिहास पुरुष मार्क्स एवं लेनिन के सच्चे अनुयायी चंद्रशेखर का बहुआयामी व्यक्तित्व था। आजादी के बाद की पीढ़ी बेनीपुरी, यशपाल, राहुल एवं प्रेमचंद की रचना पढ़ते हुए एवं कॉ. चंद्रशेखर और उनके साथियों के भाषणों से जुड़कर इस जनपद और प्रांत में कम्युनिस्ट पार्टी का विस्तार हुआ। बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाकर कॉ. चंद्रशेखर अपने जीवन काल में ही जननायक बन गए थे।
उन्होेंने अपनी पैतृक ज़मीन बेचकर राजनीति की। एक जमींदार परिवार था; लगभग सब ज़मीन बिक गई। जबकि परिवार में दो मंत्री थे।
कॉ. चंद्रशेखर को एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ थीं। पुत्र का नाम कॉ. सूर्य शेखर सिंह उर्फ प्यारे था। कॉ. प्यारे ने फोटोग्राफी का प्रशिक्षण पूर्वी जर्मनी से लिया। जनशक्ति प्रेस के फोटो विभाग की जिम्मेदारी ली। कॉ. प्यारे की शादी शांति देवी के साथ हुई थी। कॉ. प्यारे पटना डाक बंगला चौराहा पर ‘डैफोडिल्स’ खोले थे। कॉ. प्यारे गाड़ी चलाने के बड़े शौकीन थे। एक सड़क हादसे में पत्नी सहित दुर्घटनाग्रस्त होकर चल बसे।
कॉ.चंद्रशेखर की पत्नी कॉ. शकुंतला सिन्हा 1985-90 तक बरौनी की विधायक रहीं। वे 14 अप्रैल 2013 को सदा के लिए चली गईं।
कॉ.चंद्रशेखर के प्रभाव में भाई चंद्र प्रकाश कम्युनिस्ट बने। कॉ.चंद्र प्रकाश बिहार छात्र संघ के सचिव बने। बाद में नौजवान संघ राज्य सचिव बने। कॉ. चंद्र प्रकाश के साथ कॉ. सुधाकर शर्मा, तेज नारायण झा, डॉक्टर पी. गुप्ता, कॉ. गणेश शंकर विद्यार्थी राज्य नेतृत्व में काम करते थे। 25 दिसंबर 2021 को कॉ. चंद्र प्रकाश सदा के लिए चले गए।
एक महान धरोहर
कॉ. चंद्रशेखर के परिश्रम का ही फल पटना में जनशक्ति भवन है। पार्टी के अखबार, पत्र-पत्रिका को कॉ.चंद्रशेखर गाँधी मैदान में जाकर बेचते थे। स्वयं लाल झंडा को कंधे पर लेकर जुलूस में जाते थे। क्या आज हम और आप जनशक्ति पत्र-पत्रिका बेचते हैं? क्या आज बड़े नेता स्वयं झंडा कंधा पर लेकर जुलूस में जाते हैं?
बड़ी खुशी की बात है, पार्टी शताब्दी वर्ष है। जननायक का जन्म एवं पार्टी का जन्म एक ही दिन है। सौ वर्षों के कामों का मूल्यांकन करना है।
जीवन के अंतिम दिनों में उनका सबसे बड़ा जन-अभियान ‘अंतरराष्ट्रीय फासिस्ट विरोधी सम्मेलन’ का आयोजन था।
के.वी. सहाय की पुलिस की मार से क्षतिग्रस्त लिवर था, उस दिन के बाद सदा लिवर की बीमारी का इलाज चलता रहा। अंततः लिवर की बीमारी के कारण ही 20 जुलाई 1976 को कॉ. चंद्रशेखर सदा के लिए चले गए।
मुझे स्मरण है जननायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर जनशक्ति भवन के प्रांगण में रखा था। राज्य के सभी दलों के नेता शोक-संवेदना व्यक्त कर रहे थे। तत्कालीन भाकपा बिहार के राज्य सचिव कॉ. जगन्नाथ सरकार की शोक-संवेदना इस तरह से व्यक्त हुई :
“चंद्रशेखर कम्युनिस्टों के महान धरोहर थे। पार्टी का सबसे बड़ा मास लीडर; प्रखर वक्ता को हम खो चुके हैं। जनशक्ति भवन की प्रत्येक ईंट कॉमरेड के योगदान का साक्षी है।”
“चांद तेरे अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे”
“कबीरा जब हम पैदा हुए जग हँसे, हम रोये
ऐसी करनी कर चलो हम हँसे, जग रोये।”
राजकिशोर सिंह
कार्यालय सचिव
भाकपा कार्यालय
कार्यानंद भवन, बेगूसराय