शैली और संवेदना के धरातल पर श्रेया की कविताएं सही-सही उतरती हैं. इस बात को कहने में सफल दिख रही हैं कि इस उपभोक्तावादी युग में जीवन लगातार जटिल होते जा रहा है. मनुष्य की संवेदना पर अनवरत हमला हो रहा है. इसलिए संकट भी बहुत पेश आ रहे हैं. तभी तो उन्होंने कहा है- ‘छूने को नहीं/ छूने की इच्छा को’ रोकना चाहती हूं.
पढ़िए, यहां उनकी चार कविताएं :
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दिल्ली
यहां दिल्ली में
शाम छह बजने पर
गिर जाते हैं सारे सितारे
क़ुतुब मीनार पर,
यहां दिल्ली में
चांद को निकलना कहां याद रहता है
यहां रात एक मैला कपड़ा
ढांक कर आती है
जिसमे यहां के लोग
अपनी कोहनी रगड़ते हैं
बांस के जालों से
गिलहरियां कूद कर
जान देना चाहती हैं
मगर जान नहीं जाती
मरना आसान कहां होता होगा
मरना आसान होता
तो मर जाते क़ुतुब के सितारे
और मर जाता क़ुतुब खुद
या कम से कम
थक कर बैठ जाता
अधमरी गिलहरियों के पास।
नहीं गिरता तो क्या करता
सीढ़ियों से
पहाड़ों से
बिस्तर से
फर्श पर गिर कर
चूर हो जाने के बाद
फिर से गिरने को
ऊंचाई पे
नशे में धुत्त
फिर से जाकर
गिरने के बारे में न सोचता
तो क्या करता
एक पागल आदमी।
नहीं रोका पर रोक सकता था
बिल्ली के आवारापन को नहीं
कुत्ते के घात को,
छूने को नहीं
छूने की इच्छा को,
ज़बान को नहीं
उसके लड़खड़ाने को,
वह रोक सकता था
बत्तीस बल्बों वाले कमरे को
जलने से,
एक जीव को मरने से,
मरने से,
भूलने से,
चीखने से,
वह रोक सकता था
शायद सब कुछ रोक सकता था
पर अपनी नींद को
नही रोक सका
और नही रोक सका
होने से कुछ भी।
मेरी कविता कहां है?
क्या ये उन ढेरों कविताओं के बीच होगी
जो नहीं लिखी हमने
मेरी कविता तुम्हारे गले में
उग रही होगी शायद–
या मेरी कलम की स्याही में
होगी, वहां तक पहुंचने की कामना में।
मेरी कविता तुम्हारी सिगरेट की राख
हो सकती है,
जो तुम्हारे होठों के बहुत करीब जाकर
लौट जाती है सदा के लिए।
यह कविता तुम्हारी प्रेमिका है
और तुम्हारी कविता को प्रेम है
रौशनी से, समुद्र से, मोरनी से
जो यह नहीं हो सकती
यह मौन है, एक टूटी पायल है
यह कोई भ्रम हो सकती हो
जिसे मैं कहूं प्रेम
और तुम कहो कल्पना।
मेरी कविता तुम्हारी सीढ़ियों पर हो सकती है
जिसे तुम देखे बिना लापरवाही से चढ़ जाओ
या उन कविताओं में से एक
जो तुमने यूं ही लिख दी।
मेरी कविता एक कल्पना की प्रार्थी
हो सकती है,
जिसका उसे अधिकार नहीं
मेरी कविता तुम्हारी खिड़की पर
बैठी चिड़िया हो सकती है,
जो बंद रहती है सालों साल।
श्रेया दुबे– हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में MA कम्युनिकेशन की छात्रा हैं, ग्रेजुएशन दिल्ली विश्वविद्यालय में हिस्ट्री और इकोनॉमिक्स से और स्कूलिंग छत्तीसगढ़ से की हैं।