विस्तृत विषयों पर सधा हुआ विचार रखना एक अच्छे कवि की निशानी होती है। रत्नेश जी इसी श्रेणी के कवि हैं। उनकी कविताएँ जिन विषयों पर केन्द्रित होती हैं लगता है उस पर गहरी आत्मीयता से विचार हुआ होता है।
उनकी चिंताएँ कई चीज़ों को लेकर हैं। वे नौजवानों की बेऱोजगारी और उनकी बेऱोजगारी का क्रूर मजाक उड़ाती सत्ता-व्यवस्था से चिंतित हैं, निश्छल बच्चों के मन में भरे जा रहे जहर और जंग में मार दिए जा रहे उन अबोध बच्चों के लिए चिंतित हैं, जो जंग का मतलब भी नहीं समझते लेकिन आदमखोर शासन-साम्राज्य उनकी आत्मा को कूट कर हत्या कर रही है।
ये सभी चिंताएँ सहज भाषा में प्रकट हो रही हैं। एक तरह से कह सकते हैं कि सहज भाषा के ज़रिये ऊँचे भाव बोध की रचना हुई है। वर्तमान की अबूझ-लच्छेदार पहेलियों से अलग साफ-सुथरी भाषा की कविता है यह।
रत्नेश जी कविताओं में ये सब इसीलिए संभव है कि वे लोगों से आशा रखते हैं कि वे ‘अपनी अवाम में ज़्यादा यक़ीन रखे’।
अलग-अलग भाव बोध की दस कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं। आप सभी जरूर पढ़ें :
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1. प्यार करने वालों को उनकी जगह दे दो
प्यार करने वालों को
उनकी जगह दे दो
किसी को देखो
प्यार करते हुए
तो किनारे से निकल जाओ
या वापस लौट आओ
उन्हें छेड़ो मत
प्यार करने वाले
दो हाथ भर
जमीन से ज़्यादा
कुछ नहीं चाहते
इतना भर दिल तो रखो
अपने सीने में
मुल्क़, अहबाब, दुनिया, जागीर
और न जाने क्या-क्या
लड़ने और बिफरने के लिए
बहुत सी चीजें हैं, तुम्हारे पास
उनका क्या,
वो तो जहाँ होते हैं
अपने प्यार करने की जगह बना लेते हैं
उनको तुम्हारी दुनिया से
क्या ही मतलब
प्यार करने वालों ने
कभी भी
दुनिया से कुछ नहीं माँगा
प्यार किया
और शैतानी करते
बच्चों की तरह
पकड़कर पीट दिये गयें
बिना बताये कि उनका कसूर,
कसूर कैसे था
बावजूद इसके
प्यार करने वालों ने
प्यार ही किया
किसी का क़त्ल नहीं
खुद को निर्दोष नहीं
प्यार करने वाला बनाये रखा
और दुनिया के अपने हिस्से को
ख़ूबसूरत बनाने में
हमेशा मसरूफ़ रहें
इसलिए बस एक इल्तज़ा करता हूँ
प्यार करने वालों को
उनकी जगह दे दो
कम से कम
एक जगह, एक कुनबा, एक देश
या छोटा-मोटा कोई एक ग्रह तो जरूर
2. तुम्हारे लिए मैं बस दुआ कर सकता हूँ
बच्चे
फूल नहीं उगाएंगे
अगर परवरिश में
बारूद पाएंगे
लाशों की
महक सूँघने वाले बच्चे
लाशों की
महक को तरसेंगे
नफ़रत की धूल में
सने बच्चे
दुश्मनों के सिर से
फुटबाल खेलेंगे
रगों में ज़हर भरे बच्चे
मांओं के पेट फाड़
निकलेंगे
बिच्छुओं की तरह
बहुत मुश्किल है
ये भूल से भी कह पाना
कि बच्चे जो सीखेंगे
उससे अलग
कुछ और करेंगे
तुम जो चाहते हो
तुम्हारे बच्चे
हाथों में तलवार थामें
अमन के गीत गाएं
तुम पर सच में
दया आती है
तुम्हारे लिए
मैं बस
दुआ कर सकता हूँ
3. तुमसे मिलने की उम्मीद में जानाँ
अपनी ख़्वाहिश से ज़्यादा
तुमसे मिलने की उम्मीद में जानाँ
मैंने इस दुनिया को
सुंदर बनाने का
सपना देखा
कि एक दिन
अचानक
तुम मिलो
और कहो कि ना
कहीं कोई गड़बड़ है
दुनिया मेरी उम्मीद से
कम बेहतर है
4. ख़्वाहिश
भूख हो
तो भूख की बात करे
पर बताए कि
धरती को बिना नुक़सान पहुँचाए
सबसे बेहतर फ़सल
कैसे उगाई जा सकती है
एक मँझे हुए अर्थशास्त्री की तरह
बेरोज़गारी पर बात करे
लेकिन दोहराए कि
आत्मनिर्भर होने का मतलब
सड़क पर रेहड़ी लगाना नहीं होता
सुरक्षा चाहे कोई
तो कहे कि
कानून में समाहित है
सबके सुरक्षा और सम्मान की गारंटी
मगर किसी वंचित या दमित की
आह से पहले
भींच ले अपने होंठ से दाँतों से
लहूलुहान कर दे
एहतियात करे
चीजों के
अपनी-अपनी जगह होने की
कलम को कलम
कुल्हाड़ी को कुल्हाड़ी
और हल को हल की जगह
रहने में मदद करे
फ़क़त बंदूक के तसव्वुर से
ऐतराज़ करे हमेशा
मुश्किलों का सबसे पहले
कोई देसी हल निकाले
बाद में किसी बाहरी से मदद माँगे
अपनी अवाम में ज़्यादा यक़ीन रखे
मज़्हबों को ताकीद करे
महज़ भाई ही नहीं
दूसरे रिश्तों को भी बहाल करने की
हाँ, सबसे जरूरी
दोस्त होने की नसीहत दे
एक ऐसा ही देश का
प्रधान मिले
जो इसी तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाए
और नाकाम रहे
तो जवाबदेही के साथ
इस्तीफा दे दे
5. कितना आसान था सब
क्या कुछ नहीं
कहा जा सकता था
अगर कह देने की
हिम्मत जुटा लेता मन
किस ताकत को
नहीं लाया जा सकता था
घुटनों के बल
अगर चाह लिया होता
किससे प्यार नहीं
किया जा सकता था
अगर प्यार की हूक
उठी होती सीने में भीतर
खाली हाथ रह गया जीवन
महज़ ये सोचकर
कैसे कहे जा सकते हैं बोल
कैसे लड़ी जा सकती है जंग
कैसे किया जा सकता है प्यार
जबकि कितना आसान था सब
हमारी सोच और कल्पना से भी
कहीं ज्यादा आसान
6. सुकून
एक अदद सुकून
पाने के लिए
नहीं करना होता कोई
दुनियावी जतन
फूलों को देखकर
महक लेने की
ललक दरकार होती है
और उनके खिलते
रहने के लिए
थोड़ा सा श्रम
7. उम्मीद
जो लोग
एक दिन
अचानक
कहीं ग़ायब हो जाते हैं
उनके लौट आने की उम्मीद
कभी ख़त्म नहीं होती
फिर चाहें, वे लौटकर
वापस कभी न आएँ
8. अधूरे सपने
नींद में डराते हैं
आंख के नहीं
सीने में
अधूरे रह गए सपने
किसी व्यक्ति की
लाश में
घोंपे चाकू पर
बाकी रह गए
उंगलियों के निशान की तरह
डराते हैं
अतीत में
अधूरे रह गए सपने
जो किसी भी
अनचाही आहट पर
एहसास दिलाते हैं
खुद के क़ातिल
करार किए जाने का
9. जंग का फ़लसफ़ा
दुनिया की तमाम जंग अहम होंगी
अगर लड़ी जाएँगी
इंसानियत के हक़ में
जिनसे कहीं कुछ बेहतर बदलेगा,
तो फेहरिश्त में जंग को सबसे ऊपर रखा जाएगा
प्यार करने की जितनी ज़्यादा जगह बनेगी,
जंग उतनी ही ज़्यादा जरूरी समझी जाएगी
आख़िर वो कैसी जंग है?
जो मासूम और निर्दोषों को कुचल के लड़ी जाती है
किसी दरार की तरह सरहद उठा दी जाए,
सीने में जंग की मार्फ़त
तो भला ऐसी जंगों की क्या ज़रूरत?
जंग लड़ी जानी चाहिए,
अगर सबब मालूम हो
कब, कैसे और किसके लिए?
पूछा जाना चाहिए,
हर एक जंग से पहले
महज़ अक्सरियत शामिल हो,
तो जंग जरूरी नहीं हो जाती
सवाल है कि अक्सरियत बनती कैसे है?
उसका लाभ किसे मिलता है?
जंग कभी निर्वात में नहीं लड़ी जाती
10. मन की सीमा
पुरुष होने की ज़मीन में
बाँध लेगा तुम्हें
मैं नहीं तो मेरा मन
ज़रूर बाँध लेगा
मेरा मन सुदूर पहाड़ों में
छिपा हुआ कोई
वनस्पति नहीं है
इसी समतल में पायी जाने वाली
घास है
वो छाप लेगी तुम्हें
अपने पुस्तैनी विस्तार से
जो इसी मिट्टी में दबी है
सदियों से
मेरी दोस्त
मुझे तुम्हारे साथ की चाह है
पर मेरा मन
तुम्हारे मन जैसा बिलकुल नहीं है
रत्नेश कुमार जी गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में शोधार्थी हैं। एक अच्छे अध्येता और कवि हैं। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
मो. 7268920526
सभी कविताएं अच्छी हैं। कविता विविध विषय पर है। समाज की समस्या को मूल रूप में वर्णित किया गया है। युद्ध, प्रेम, उम्मीद, सपने आदि विषयों पर लिखी गई कविता अपने आप में समाज को देखने का दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। आपकी कविता जंग का फ़लसफ़ा वर्तमान समय की विभीषिका को उजागर करती है। कविता का मूलभाव बोध यह है कि जंग लड़ा जाना चाहिए, लेकिन इंसानियत के हक में न कि धार्मिक उन्माद के लिए। इसी तरह सभी कविताएं एक नई बातों को हमारे सामने रखती है। आपका धन्यवाद। आपकी रचनात्मकता बनी रहें।
अच्छी कविताएं। कवि को बधाई और शुभकामनाएँ ।