
चार कविताएं / श्रेया दुबे
शैली और संवेदना के धरातल पर श्रेया की कविताएं सही-सही उतरती हैं. इस बात को कहने में सफल दिख रही ...

लाल सितारा का उदय / राजकिशोर सिंह
बिहार वामपंथी राजनीति की अनुकूल भूमि रहा है और है। स्वतंत्रता-पूर्व वाम राजनीतिक-वैचारिकी को स्वामी सहजानंद सरस्वती, राहुल सांस्कृत्यायन, बाबा ...

व्यंग्य / प्रवीण प्रियदर्शी
व्यंग्य लेखन में प्रवीण जी पुराने समय से महारथी हैं। समाज की गंभीर से गंभीर समस्याओं पर विचार करते हैं ...

दस कविताएँ / रत्नेश कुमार
विस्तृत विषयों पर सधा हुआ विचार रखना एक अच्छे कवि की निशानी होती है। रत्नेश जी इसी श्रेणी के कवि ...

दो कविताएँ / बंधु पुष्कर
वर्तमान में कविता जिस तरह से जनतांत्रिक और जनोन्मुखी होने की भूमिका का निर्वाह कर रही है, उतना शायद साहित्य ...

तीन कविताएँ / मरीना एक्का
भूमंडलीकरण के इस अंध–युग में जीवन का हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। नकारात्मक–सकारात्मक परिवर्तन हर जगह हुआ है। परिवर्तन की ...

पाँच ग़ज़लें / सत्यम भारती
सत्यम भारती अपनी ग़ज़लों में जीवन के कई श्वेत-श्याम चित्र खींचते हैं। उनकी भाषा सरल है, कहन में बनावटीपन नहीं ...

चार कविताएँ / कुमार विनीताभ
यह समय दिग्भ्रमित होने का है। व्यक्ति और समाज दोनों को उसके लक्ष्य की पटरी से उतार दिया गया है। ...

दो कविताएँ / जागेश्वर सिंह
मनुष्य संवेदनशील प्राणी है, इसलिए वह समाज में हो रहे उठा–पटक के संबंध में विचार करता है और उसकी तह ...

तीन नवगीत / रूपम झा
रूपम झा अपने नवगीतों के जरिये वर्तमान की विसंगतियों पर गहरा प्रहार करती हैं। उनके नवगीतों में प्रतिरोध और व्यंग्य ...